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Chhattisgarh Big Housing Project: नए और पुराने रायपुर के बीच एक और शहर बसाने की तैयारी में सरकार

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रायपुर। छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सरकार एक नया शहर बसाने की तैयारी कर रही है। करोड़ों रुपये खर्च करके बनाए गए नवा रायपुर को आबाद करने की कोशिश में जुटी सरकार नए और पुराने रायपुर के बीच बड़ा हाउसिंग प्रोजेक्ट लाने जा रही है। कमल विहार की तर्ज पर करीब पांच हजार हेक्टेयर में यह शहर बसाया जाएगा। इसका पूरा प्लान तैयार हो चुका है।

प्रोजेक्ट एरिया में कई बड़े लोगों की भी जमीन आने की संभावना है। इस वजह से अफसर इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं। लेकिन सूत्रों का दावा है कि योजना पूरी तरह तैयार हो चुकी है। केवल राज्य सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है।

सूत्रों के अनुसार नए शहर का प्लान नवा रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) ने तैयार किया है, लेकिन वहां के अफसर फिलहाल ऐसे किसी प्रोजेक्ट से इन्कार कर रहे हैं। यह प्रोजेक्ट विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में हुई एक चर्चा के दौरान सार्वजनिक हुआ है।

पिछले दिनों सदन में भाजपा के वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने यह मामला उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार के लिए यह प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। इसके जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस प्रोजेक्ट की सीधे पुष्टि तो नहीं की, लेकिन दोनों शहरों के बीच टाउनशिप की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि दोनों शहरों के बीच का बड़ा हिस्सा वीरान है। ऐसे में नवा रायपुर को आबाद करने केलिए पुराने शहर को ही आगे लेकर जाना होगा।

नवा रायपुर को आबाद करने की हो रही है कोशिश

सत्ता की बागडोर संभालने के बाद से मुख्यमंत्री बघेल नवा रायपुर को आबाद करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। इसकी कवायद के तहत उन्होंने राजभवन, मुख्यमंत्री निवास सहित मंत्रियों के निवास के निर्माण का काम शुरू कराया है। अफसरों को भी नवा रायपुर जाने के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। बता दें कि मंत्रालय और संचालनालय के साथ ही प्रदेश स्तर के सभी सरकारी कार्यालय नवा रायपुर स्थानांतरित किए जा चुके हैं। वहां करीब साढ़े चार हजार आवास भी बने हुए हैं। इसके बावजूद वहां अब भी वीरानी है।

आरडीए की मुश्किलें बढ़ा रहा कमल विहार

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) ने कमल विहार प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके लिए आरडीए ने बैंक से बड़ी राशि कर्ज ली है, जो अब बढ़कर करीब 493 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। आरडीए कर्ज जुकाने के लिए रास्ता तलाश रहा है। एनआरडीए की स्थिति भी लगभग ऐसी ही है।

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