Indian Republic News

छत्तीसगढ़: खतरे में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ! क्या खत्म हो जाएगा पत्रकारिता का दौर?

0

- Advertisement -

पत्रकारिता हमेशा से ही एक संघर्षशील पेशा रहा है। जहां पत्रकारों पर एक ओर सच को दिखाने की जिम्मेदारी होती है वहीं दूसरी ओर शासन प्रशासन एवं दबंगों का भय भी बना रहता है। प्रशासन को आईना दिखाने वाले पत्रकार हमेशा ही दुर्भावना अपमान व फर्जी मामलों के शिकार होते हैं। पत्रकारिता जगत से जुड़े कई लोगों के खिलाफ दर्ज किए जाने वाले झूठे मामलों, दबंगों द्वारा की गई मारपीट एवं आर्थिक तंगी पत्रकारिता के लिए एक बड़ी चुनौती है। यही कारण है आज कई मीडिया समूह व पत्रकार निष्पक्ष पत्रकारिता करने के बजाए सत्ता पक्ष की दलाली करना ज्यादा मुनासिब समझते हैं।

पत्रकारों पर दर्ज होते हैं कई मामले

छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों में भी लगातार पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट और फर्जी मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। अभी हाल ही के चर्चित मामलों में वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला के साथ गुंडों द्वारा कि गई मारपीट, पत्रकार मनीष सोनी पर हुई FIR , तथा दैनिक अखबार के संपादक जितेंद्र जयसवाल को लूट जैसी गंभीर धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना, मध्यप्रदेश के सीधी में पत्रकारों को थाने में नंगा कर उनका फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करना जैसी तमाम घटनाएं शासन व प्रशासन को आईना दिखाने के लिए काफी हैं।

पत्रकार क्यों होते हैं दुर्भावना का शिकार

समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार अनियमितता तथा नियम कानून की अनदेखी कर, सत्ता पक्ष के लोग व भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी जब कोई ऐसा काम करते हैं जिससे समाज में पीड़ित ,शोषित, दलित वर्गों के लोगों को शासन की सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता या फिर जनता के पैसे की लूट या बर्बादी की जा रही होती है तब एक निरीह पत्रकार जनता की आवाज बनकर वह समाचार विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से समाज के सामने लेकर आता है। और जब यह खबर इतनी प्रभावी हो जाती है कि उस जिम्मेदार व्यक्ति के ऊपर कार्यवाही हो जाए तो शासन व प्रशासन दोनों ही उस पत्रकार को अपना दुश्मन मान लेते हैं। और ताक में बैठे रहते हैं एक मौके की। फिर चाहे उस पत्रकार की गलती हो या ना हो वह सबसे बड़ा अपराधी बन जाता है और उसके साथ आतंकवादियों जैसा बर्ताव प्रशासन के लोग करना शुरू कर देते हैं।

क्या खत्म हो जाएगा पत्रकारिता का दौर

आज के दौर में जहां युवा बड़ी-बड़ी कंपनियों एवं शासकीय नौकरियों के पीछे लगे हुए हैं वहां पर किसी युवा का पत्रकारिता जैसे चुनौतीपूर्ण पेशे में आना वैसे भी दुर्लभ हो गया है। पर लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा और देश हित में काम करने का जुनून जब एक युवा को पत्रकारिता से जोड़ता है तब शासन प्रशासन द्वारा उसके साथ किए गए दुर्व्यवहार और ऐसे मामलों से युवा पत्रकारों का मनोबल टूटता है और वह पत्रकारिता जैसे पेशे को छोड़कर अपने जीवन यापन के लिए किसी दूसरे पेशे का चुनाव कर लेते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो समाज में कोई पत्रकार किसी गरीब की आवाज नहीं उठाएगा, कोई सच कभी सामने नहीं आ पाएगा, कोई भ्रष्टाचार कभी उजागर नहीं होगा और किसी भ्रष्ट अधिकारी पर कभी कार्यवाही नहीं होगी।

Leave A Reply

Your email address will not be published.