छत्तीसगढ़ में एक पत्रकार नीलेश शर्मा को राज्य की कांग्रेस पार्टी की सरकार के ख़िलाफ़ व्यंग्य लिखने के आरोप में जेल भेजे जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
परिजनों का आरोप है कि जेल में उन्हें मुलाकात करने की अनुमति नहीं मिली और जब इसका विरोध किया गया तो नीलेश शर्मा को 110 किलोमीटर दूर बिलासपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने आरोप लगाया है कि ‘पत्रकार सुरक्षा क़ानून’ बनाने का वादा करने वाले, पत्रकारों को ही निशाना बना रहे हैं. वहीं पत्रकार संगठनों ने भी इसकी आलोचना की है.
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी का कहना है कि पत्रकार के ख़िलाफ़ नियमानुसार कार्रवाई की गई है.
राज्य में कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने बीबीसी से कहा,”पत्रकारिता और उसकी भाषा की भी अपनी मर्यादा होती है. जिस भाषा का उपयोग उस रिपोर्ट में किया गया है, वह बेहद अमर्यादित और आपत्तिजनक है.”
सुशील आनंद शुक्ला ने दावा किया कि पार्टी के घोषणापत्र में जिस पत्रकार सुरक्षा क़ानून की बात कही गई थी, उनकी सरकार जल्दी ही यह क़ानून भी ले कर आएगी.
इधर सोशल मीडिया पर पुलिस का बिना जारीकर्ता के नाम वाला एक प्रेस नोट भी वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि पुलिस ने नीलेश शर्मा के सेल फ़ोन से कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद की है. इसमें किसी पुलिस अधिकारी से फ़ोन टैपिंग के रिकार्ड, ब्लैकमेलिंग, अश्लील चैट मिलने की बात कही गई है. इस विज्ञप्ति में विस्तार से इन सबका वर्णन है.
अदालत में जांच रिपोर्ट पेश करने से पहले ही इसके कथित तथ्यों को सार्वजनिक किए जाने के मामले की पुष्टि के लिए हमने रायपुर के पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन हमें उनका पक्ष नहीं मिल पाया.
व्यंग्य से निशाना
रायपुर के स्थानीय अख़बारों के प्रबंधन व विज्ञापन से जुड़े विभागों में काम कर चुके 38 साल के नीलेश शर्मा पिछले कुछ सालों से ख़बरों की एक वेबसाइट चलाते रहे हैं.
भाजपा शासनकाल में भी उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित होने वाले व्यंग्य लेख चर्चा में रहे हैं. आरोप है कि ताज़ा व्यंग्य लेख में उनके वेब पोर्टल पर राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार पर निशाना साधते हुए, ढाई-ढाई साल के फ़ॉर्मूले पर अमल करते हुए सत्ता परिवर्तन की बात कही गई थी.
हालांकि, इस व्यंग्य लेख में राज्य सरकार के किसी के भी व्यक्ति के नाम का सीधे-सीधे उल्लेख नहीं था. बल्कि उन नामों की जगह दूसरे नाम लिखे गए थे.
एक मार्च को ‘वाह-वाह वाह खेल शुरू हो गया’ शीर्षक से प्रकाशित व्यंग्य लेख को आपत्तिजनक बताते हुए रायपुर शहर से लगे हुए आरंग कस्बे के कांग्रेस पार्टी के महामंत्री खिलावन निषाद ने पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई थी.
शिकायत के अनुसार,”उक्त प्रसारित सामग्री में सरकार के माननीय मंत्रीगण के नाम सांकेतिक रूप से लिख करके उन्हें पद से हटाए जाने का उल्लेख किया गया है तथा सत्तू, धन्नू, रुद्रू, विक्की, शैलू जैसे सांकेतिक नामों का प्रयोग करते हुए इनसे मिलते-जुलते नाम के विधायकों के असंतुष्ट होने का दुष्प्रचार किया गया है. जबकि ये सभी विधायक पार्टी के वरिष्ठ विधायक हैं और सरकार में पूरा सम्मान रखते हुए पूरा तालमेल बना कर जनहित में काम कर रहे हैं.”
शिकायत में विपक्षी दल भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि “वो अपनी गोदी मीडिया के माध्यम से किसी गुप्त एजेंडे के चलते ऐसी झूठी ख़बरें, अफ़वाहें, ग़लत बातें प्रचारित कर रही है जिससे कांग्रेस सरकार एवं पार्टी के विभिन्न मंत्रीगण एवं विधायकों, पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं में संघर्ष उत्पन्न हो जाए, जिससे कांग्रेस सरकार को नुक़सान हो जाए.”
नीलेश शर्मा की गिरफ़्तारी
शिकायत दर्ज होने के कुछ ही घंटे के भीतर पुलिस ने पत्रकार नीलेश शर्मा के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 504, 505 (1), बी व 505 (2) के तहत मामला दर्ज कर लिया और अगले कुछ घंटों में ही उन्हें हिरासत में भी ले लिया गया. हमने इस संबंध में रायपुर के पुलिस अधीक्षक से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन इस संबंध में उनका कोई पक्ष नहीं मिल पाया.
नीलेश शर्मा के बड़े भाई रितेश शर्मा ने बीबीसी से कहा,”पुलिस शाम को नीलेश को उठा कर ले गई. हमें रात 11 बजे के आसपास सिविल लाइन थाना पहुंचने पर गिरफ़्तारी की बात बताई गई. हम अगले दिन नीलेश से मिलने जेल पहुंचे तो हमें मिलने नहीं दिया गया. इसके बाद शनिवार को प्रशासनिक कारण बता कर नीलेश को बिलासपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया.”
रितेश शर्मा कहते हैं,”अगर व्यंग्य लिखना अपराध है तो सरकार को कवि सम्मेलनों पर भी रोक लगानी पड़ेगी.”
रायपुर प्रेस क्लब के निवर्तमान उपाध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर इस पूरी कार्रवाई को सरकार की तानाशाही करार दे रहे हैं. उनका आरोप है कि सरकार के ख़िलाफ़ लिखने पर मीडिया संस्थाओं पर दबाव बना कर नौकरी से निकालने, सोशल मीडिया के पोस्ट हटाने, विज्ञापन रोकने की कार्रवाई आम बात है.
प्रफुल्ल कहते हैं, “फ़्री-प्रेस की बात कहने वाले राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी की सरकार छत्तीसगढ़ में अपनी थोड़ी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं करती. पत्रकारों को धमकाने, पत्रकारों के साथ कांग्रेसियों द्वारा मारपीट करने और पत्रकारों को गिरफ़्तार करने के एक के बाद एक मामले बताते हैं कि राज्य में निरपेक्ष पत्रकारिता की जगह कम होती जा रही है.”
प्रफुल्ल ठाकुर का कहना है कि सरकार की तरफ़ से कहा जा रहा है कि नीलेश की गिरफ़्तारी ‘फ़ेक’ न्यूज़ के प्रसार के कारण की गई है. राज्य में सरकार ने पहले से ही ‘फ़ेक न्यूज़ कमेटी’ बनाई है. आख़िर इस ‘फ़ेक न्यूज़ कमेटी’ को इस मामले को देने की ज़रूरत क्यों नहीं समझी गई?
पत्रकार सुरक्षा क़ानून
विपक्ष में रहते हुए भूपेश बघेल पत्रकारिता की स्वतंत्रता के पक्षधरों में शुमार होते रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विधानसभा में निजी विधेयक प्रस्तुत करने की भी बात कही थी. हालांकि यह विधेयक कभी पेश नहीं किया गया.
विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में भी वकीलों, चिकित्सकों और पत्रकारों के लिए सुरक्षा क़ानून बनाने का वादा किया था.
सत्ता में आने के बाद इन क़ानूनों को सरकार ने ख़ूब प्रचारित किया. लेकिन अब जबकि राज्य में फिर से विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया में महज़ 18 महीने बचे हैं, इन क़ानूनों का कहीं अता-पता नहीं है.
हालत ये है कि राज्य में पत्रकार सुरक्षा क़ानून की मांग को लेकर रमन सिंह के कार्यकाल में शुरू किए गए आंदोलन के संयोजक, बस्तर के पत्रकार कमल शुक्ला और सतीश यादव की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में, कांग्रेस नेताओं पर थाने के भीतर ही मारपीट का आरोप है.
हालांकि इस मामले में सरकार और कांग्रेस पार्टी ने दावा किया था कि मारपीट की घटना में कोई भी कांग्रेसी शामिल नहीं है. लेकिन बाद में इन कांग्रेस पदाधिकारियों के नियुक्ति पत्र सामने आने के बाद पार्टी ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया था कि क़ानून अपना काम करेगा.
कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला कहते हैं, “हमारी सरकार में पत्रकार और पत्रकारिता का पूरा मान-सम्मान है. हमारी पार्टी स्वतंत्र पत्रकारिता की पक्षधर है. रही बात पत्रकार सुरक्षा क़ानून की तो समय सीमा तो हम नहीं बता पाएंगे. लेकिन हमारी सरकार जल्दी ही पत्रकार सुरक्षा क़ानून लाएगी.”
लेकिन पत्रकार सुरक्षा क़ानून आंदोलन के संयोजक और बस्तर के पत्रकार कमल शुक्ला इस दावे को हास्यास्पद बताते हैं.
उनका दावा है कि पिछले तीन सालों में पत्रकारों के ख़िलाफ़ सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं या उन पर हमले की घटनाएं हुई हैं. कमल शुक्ला कहते हैं कि रमन सिंह के 15 साल के शासनकाल में भी इतने मामले दर्ज नहीं हुए थे.
वे कहते हैं, “पत्रकारों में दहशत और भय का माहौल है. नीलेश शर्मा के मामले में सरकार ऐसा बर्ताव कर रही है, जैसे नीलेश कोई आतंकवादी हों, जिन्हें एक जेल से दूसरे जेल में स्थानांतरित किया जा रहा है. अगर ताज़ा विधानसभा सत्र में सरकार पत्रकार सुरक्षा क़ानून नहीं लाती तो 10 मार्च से हम फिर से आंदोलन शुरू करेंगे.”