सूरजपुर -मोहिबुल हसन (लोलो)………. सुरजपुर जिले के ग्राम बृजनगर मे बांस से सामान बनाने का काम कई वर्षो से किया जा रहा है. एक समाज के दस परिवारो के द्वारा अपनी तुर्री जाती को बदल कर बसौड जाती मे सामिल होकर परेसानियो का सामंना अभी भी कर रहे है। सुत्रों के अनुशार परंपरागतस्वरूप से इसका व्यवसाय मात्र बांस से बने साम्रग्री बनाते आरहे है ।
मिलिजानकारी के अनुशार बृजनगर मे निवास रथ शिव कुमार, गेदा राम ,के दस परिवारो के द्वारा बांस के कई सामान आधुनिक्ता के अंधेरे में गुम होते जा रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि बांस की काम करने की वजह से अपनी धर्म की जाति भी चेंजकर दिये । इस मुद्दे पर बात करते हुए इस समाज के लोग आज भी मायूस हो जाते हैं.अब अपना परिवार चलाना इस समुदाय के लिए एक चुनौती बन चूंकी है,,हालांकि अब जिला प्रशासन इनके लिए रोजगार मुहैया करा रहा है ताकि इनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके और इस परंपरागत धरोहर भी कायम राह सके।
बी ओ — सुरजपुर जिले का बृजनगर, खुंटरापारा, कल्याणपुर और सोनवाही गांव आज भी पूरे संभाग में बांस से बने सामान की आपूर्ति के लिए मशहूर हैं. बसौर जाति पीढ़ंही दर पीढ़ंही से बांस का सामान बनाते अपना जिवन यापन करते आरहे है। और बर्तन बनाकर जीवन यापन कर रहे है , बांस से आमतौर पर सूपा, मोरा, दौरी, झांपी, बेना और पेटी बनाया जाता है. बांस निर्मित सूपा ,गेंहू, धान को साफ करने के काम आता है. मोरा की मदद से धान को खेत से खलिहान तक उपयोग मे लाया जाता है लेहाजा इस दौर मे भी लोग अपना धर्म चेंज कर जाती नही बन्ने के कारण अपनी धर्म ही चेज कर खासतौर पर शादी विवाह में मिठाई या अन्य सामग्री रखने मे उपयोग आता है। झांपी में बर्तन और आभूषण रखकर ऊपर से बंद किया जा सकता है. बेनी गर्मी से राहत के लिए पंखे का काम करता है. बांस की पेटी में कपड़ा या अन्य सामान रखा जाता है.समाज के लोगों को पहले वन विभाग के डीपो से बांस सस्ते में मिल जाता था. लेकिन अब काम के लिए गांव गांव भटक कर मनमाने कीमत पर बांस खरीदना पड़ रहा है. महंगे बांस ने आर्थिक सेहत को बिगाड़ दिया है. बांस से बने उत्पाद को पहले बाजार- बाजार घूम कर बेचे जाते थे. लेकिन आधुनिक समय में बांस से बने सामानों का विकल्प कई अन्य धातु के बर्तनों ने ले लिया है. खासकर प्लास्टिक के कारण बांस से बने सामान का अब बाजार में बिकना मुश्किल हो गया है.जिसकी वजह से इनकी आर्थिक स्थिति और खराब होती जा रही है, दरअसल बांस का काम करनेवाले इस समुदाय की जाति तुरी थी. लेकिन बांस का काम करने की वजह से इनकी जाति का नाम बसौर पड़ गया,, अब यही जाति इनके लिए मुसीबत साबित हो रही है,, दरअसल सरकारी रिकॉर्ड में बसौर नाम की कोई भी जाति नहीं है,, जिसकी वजह से इन लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है साथ ही इस सामुदाय के छात्रों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है
बी ओ – आखिरकार इस सामुदाय के लोगों की समस्या को जिला प्रशासन ने समझा और जिला प्रशासन के द्वारा अब इन इलाकों में बसौर जाति के लोगों को बैम्बू क्राफ्ट का प्रशिक्षण दिया जा रहा है,, ताकि यह लोग आधुनिकता के हिसाब से बांस का काम कर सकें खुले मार्केट में अच्छी कीमत मिल सके,, साथ ही इनकी जाति के सुधार को लेकर कलेक्टर सूरजपुर ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जो भी त्रुटि हो उसे जल्दी ठीक किया जायगा , ताकि छात्रों के जाति प्रमाण पत्र बनाने में किसी प्रकार की कोई असुविधा ना हो।
बी ओ — आधुनिकता के इस दौर में आज हमारी कई परंपरागत चीजें विलुप्त होने की कगार पर हैं, ऐसे में सरकार को इन परंपरागत चीजों को बढ़ावा देने की जरूरत है,, ताकि इन्हें संजोकर रखा जा सके ।