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लेबर कोड एवं कृषि कानून के विरोध में एसईसीएल में किया गया ,जबरदस्त विरोध प्रदर्शन – हरिद्वार सिंह

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डॉ प्रताप नारायण: देश के 10 सेंट्रल ट्रेड यूनियन (बीएमएस को छोड़कर) ने केन्द्र सरकार की मज़दूर विरोधी, उद्योग विरोधी एवं किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 26 मई 2021 को पूरे देश में काला फीता लगाकर नारेबाजी करते हुए काला दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इसी कड़ी में संयुक्त मोर्चा के द्वारा एसईसीएल के सभी क्षेत्रों के कोयला खदान के मुहाड़े/गेट पर, कार्यालयों में काला फीता लगाकर काला दिवस मनाया गया।

एटक एसईसीएल के महासचिव कामरेड हरिद्वार सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि राष्ट्रीय निर्णय के अनुसार यह कार्यक्रम संयुक्त मोर्चे (बीएमएस को छोड़कर) का था। एसईसीएल के सभी क्षेत्रों में संयुक्त मोर्चा के द्वारा काला फीता लगाकर नारेबाजी करते हुए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया गया। जिन जगहों पर अन्य संगठन के साथी इस विरोध कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए, वहां अकेले एटक के साथियों ने पूरी तत्परता से काला फीता लगाकर नारेबाजी करते हुए काला दिवस मनाया।

कामरेड हरिद्वार सिंह ने कहा कि 26 मई 2014 को एनडीए की मोदी सरकार ने शपथ लिया था और उसी दिन से देश की जनता के लिए काला दिन शुरू हो गया था। आज देश के सभी वर्ग किसान, मजदूर, नौजवान, छात्र, महिलाए आदि नौकरी, महंगाई, बेरोजगारी, खेती आदि को लेकर परेशान हैं। केंद्र सरकार कोविड-19 की आड़ में देश के मजदूर वर्ग पर लगातार प्रहार कर रहा है। मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को खत्म कर सरकार ने 4 लेबर कोड पारित कर दिया है, मजदूरों के कई अधिकार खत्म कर दिए गए, श्रम कानूनों में मालिक पक्षीय संशोधन किया जा रहा है, भूमिगत खदानों को बंद करना, कामर्शियल माइनिंग, नई खदानों का निजी मालिकों को आबंटन, कर्मचारियों को 35 वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की आयु के बाद जबरन रिटायर करने की योजना सरकार ला रही है, फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट, रात्रि पाली में महिलाओं को ड्यूटी करने का कानून पास कर दिया है, 11वे वेतन समझौता के लिए जेबीसीसीआई-XI का गठन करने के लिए सरकार ने पत्र तो जारी कर दिया लेकिन अभी तक कमेटी का गठन नहीं हुआ है, कोल इंडिया को कई कंपनियों में बांटने की योजना हो या सीएमपीएफ को ईपीएफ में विलय करने की योजना, अभी ट्रेड यूनियनो के दबाव में रुका है, देश के सरकारी उपक्रमों को पूंजीपतियों के हाथों बेचा जा रहा है, रोजगार खत्म हो गए हैं, ठेका मजदूरों का शोषण किसी से छुपा नहीं है, आज भी ठेका मजदूरों को कोल इंडिया की हाई पावर कमेटी द्वारा निर्धारित बढ़ा हुआ वेतन नहीं मिल रहा है, किसान तीनों कृषि कानून के खिलाफ चार महीनों से सड़कों पर हैं, किसानों को ज़मीन अधिग्रहण के बदले रोजगार नहीं देने की योजना आदि ऐसी मजदूर, उद्योग व किसान विरोधी नीतियां वर्तमान केंद्र सरकार की हैं। देश की अर्थव्यवस्था आज सबसे नीचे चली गई है। महंगाई ने सारी सीमाओं को पार कर दिया है पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर,खाने का तेल 170 से 200 प्रति लीटर, दाल 100 रुपए के ऊपर हो गया है, आदि। कोविड-19 महामारी में भी कोल इंडिया के कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर खदान से कोयला निकाल रहें हैं, ताकि देश अंधेरे में ना जाए, देश के बड़े बड़े उपकरण, अस्पतालों की बड़ी बड़ी मशीनें बंद ना हों। कोरोना काल में भी कोल इंडिया में कोयला उत्पादन बंद नही रहा। लेकिन फिर भी यह सरकार कोल इंडिया को बेचना चाहती है। जबकि कोरोना महामारी में निजी उद्योगों का पता नहीं है। आज सरकारी संस्थाए ही इस विपदा की घड़ी में देश के साथ खड़े हैं।

कामरेड हरिद्वार सिंह ने समस्त कोयला श्रमिकों, एटक यूनियन के नेताओं, कार्यकर्ताओं, आज के विरोध कार्यक्रम में शामिल हुए संयुक्त मोर्चा के नेताओं, कार्यकर्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि इस कोरोना महामारी के दौरान घर से निकलना ही बड़ी चुनौती है, ऐसी परिस्थिति में संयुक्त मोर्चे के साथियों ने विरोध कार्यक्रम को सफल बनाया। मैं एटक संगठन की ओर से सभी को बहुत बहुत बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि आगे भी हम सभी संगठन के लोग और भी बेहतर तरीके से मिलकर केन्द्र सरकार की मज़दूर विरोधी, उद्योग विरोधी व किसान विरोधी नीतियों का डटकर मुकाबला करेंगे।

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