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रायपुर (सूरजपुर)-पुरस्कार को ग्रीन नोबल के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह पुरस्कार दुनियाभर से सात लोगों को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में मंगलवार को आयोजित कार्यक्रम में दिया गया। यह पुरस्कार दुनिया के छह महाद्वीपीय क्षेत्रों के जमीनी स्तर के पर्यावरण नायकों को दिया जाता है।
आंदोलनकारी आलोक शुक्ला को छत्तीसगढ़ के प्रख्यात ग्रीन नोबल अवार्ड के लिए चुना गया है। यह अवार्ड 12 सालों से जारी आंदोलन की अगुवाई को दिया जा रहा है। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति आंदोलनकारी हैं आलोक शुक्ला।
कहां स्थित है हसदेव अरण्य
हसदेव अरण्य सरगुजा संभाग का हिस्सा है। यह 445000 एकड़ में फैला एक विशाल जंगल है। यह जंगल आदिवासियों, वनवासियों और जैव विविधता के लिए जाना जाता है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए यह हसदेव आरण्य सरगुजा कि इस धरोहर को भेंट चढ़ा दिया गया। इलाके में 21 कोल खदानों को मंजूरी मिली थी। इसके खिलाफ लाखों ग्रामीण गांधीवादी तरीके से 12 सालों से लगातार संघर्ष कर रहे थे,को बचाने आलोक शुक्ला को यह प्रख्यात अवार्ड दिया जा रहा है । हसदेव आरण्य राज्य की राजनीतिक का केंद्र भी रहा है। 2018 के चुनावी घोषणा पत्र में हसदेव के संरक्षण की बात थी। लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही भूपेश बघेल वादे से मुकर गए ।उनके कार्यकाल में हसदेव आरण्य बचाओ संघर्ष समिति के आंदोलनकारी 300 किलोमीटर पैदल चलकर आए लेकिन, बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मिलना तक मुनासिब नहीं समझा ।
अदानी का क्या है रिश्ता हसदेव आरण्य से
2003 से 2018 तक छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार थी। एलिफेंट रिजर्व एरिया हमने बनाया की बात तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह करने लगे। तब कांग्रेस के नेताओं ने आरटीआई के जरिए मिले पेपर्स के आधार पर यह आरोप लगाया, कि अडानी के कोल खदानों के लिए कॉरिडोर बना रहे हैं,मुख्यमंत्री रमन सिंह। लेमरु एलिफेंट रिजर्व एरिया का रकबा हमने बढ़ाया, प्रदेश अध्यक्ष से मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल ने यह श्रेय लिया। हसदेव जंगलों रक्षा होनी चाहिए की बात कहने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बनने के बाद बदल गए।
क्या है ताजा स्थिति हसदेव आरण्य की
21 में से 17 कोल ब्लॉक का निलंबन रद्द हुआ है। लेकिन 4 कोल ब्लॉक को मंजूरी अभी भी बरकरार है। इस मंजूरी के खिलाफ आंदोलनकारीयों का संघर्ष जारी है। जल जंगल जमीन अस्तित्व के लिए आंदोलनकारी संघर्ष जारी रखने की बात कर रहे हैं।