(IRN.24…राधे यादव भैयाथान)
1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तो कहा गया:अब हमारा देश आज़ाद है, अब हर बच्चा पढ़ेगा, आगे बढ़ेगा।”लेकिन आज, 75 साल बाद भी, भारत का एक बड़ा हिस्सा अशिक्षा, अधूरी स्कूलिंग और टूटी हुई उम्मीदों से जूझ रहा है।क्यों? आखिर क्यों?क्या हमने सिर्फ तिरंगा फहराना सीखा…या बच्चों के हाथों में किताबें देना भूल गए? शिक्षा – जिसे कहा गया था सबसे बड़ा हथियार स्वतंत्रता संग्राम के नेता – गांधी, नेहरू, अंबेडकर सभी ने माना था:अगर भारत को सशक्त बनाना है, तो शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी।”लेकिन क्या वाकई हमने दी प्राथमिकता?आजादी के बाद शिक्षा व्यवस्था की सच्ची तस्वीर:1. गांवों में स्कूल की कमी: आज भी लाखों गांवों में ठीक से स्कूल नहीं हैं2. भाषा की बाधा: अंग्रेज़ी बन गई सफलता की कुंजी, जबकि करोड़ों बच्चे मातृभाषा में लड़खड़ाते रहे3. गरीबी और बाल मजदूरी: किताबों से पहले पेट भरने की मजबूरी4. नीति बनती रही, ज़मीन पर नहीं उतरी: योजनाएं आईं, घोषणाएं हुईं, लेकिन स्कूलों में शिक्षक, बिल्डिंग, शौचालय तक नहीं5. राजनीति का दखल: शिक्षा को मिशन नहीं, वोट बैंक बना दिया गयासवाल उठता है – क्या ये सब अनजाने में हुआ?नहीं!भारत में गरीब को गरीब बनाए रखना एक सोची-समझी रणनीति रही है।”जब जनता पढ़ी-लिखी नहीं होती, तो…वह सवाल नहीं करतीवह नेताओं के झूठे वादों पर भरोसा करती हैवह धार्मिक और जातिगत भावनाओं में उलझकर अपना हक भूल जाती हैशिक्षक नहीं, “नौकरीधारी” बना दिया गयाआज के सरकारी स्कूलों में:शिक्षक पढ़ाने से ज्यादा फॉर्म भरने, जनगणना कराने, चुनाव ड्यूटी में लगे रहते हैंकई स्कूलों में शिक्षक 2 घंटे में चले जाते हैं, क्योंकि निगरानी नहींऔर दुखद बात ये – शिक्षक खुद अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ातेक्या इससे बड़ा अविश्वास कुछ हो सकता है?क्या कोई रास्ता है? हां, लेकिन पूरी नीयत चाहिए।1. शिक्षा को “सेवा” की तरह समझें, सिर्फ नौकरी नहीं2. स्कूलों को डिजिटल बनाएं, जहां दूर-दराज के गांव में भी स्मार्ट क्लास हो3. पढ़ाई को व्यावहारिक और रोजगार आधारित बनाएं4. *राजनीति से शिक्षा आप क्या सोचते हैं?