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लालो का लाल भईया लाल, का विरोध होना पड़ा उन्हीं के सामने शरणागत

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बैकुण्ठपुर- लोकतंत्र का त्योहार जिसे चुनाव कहा जाता है जब-जब चुनाव आता है तब तक रूठे को मनाने की कवायत होती है कुछ ऐसा ही इस समय विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों में देखने को मिलेगा और मिल भी रहा है, यदि हम बात करें बैकुंठपुर विधानसभा कि जहां भाजपा प्रत्याशी भईया लाल राजवाड़े व भाजपा के जिला उपाध्यक्ष शैलेश शिवहरे की तो इनके बीच टिकट को लेकर प्रतिस्पर्धा थी, प्रतिस्पर्धा में भईया लाल राजवाड़े जीत गए और शैलेश शिवहरे हर गए और नाराज हो गए और वह अपनी नाराजगी की वजह से अपने पार्टी के प्रत्याशी से दूरी बना ली, यह दूरी उनके साथ-साथ उनके समर्थक हुआ कार्यकर्ता भी बना लिए, जिसके लेकर भाजपा के प्रत्याशी भी काफी परेशान थे और रूठे हुए शैलेश शिवहरे को मनाने में जुटे हुए थे अंततः नामांकन से एक दिन पहले भाजपा प्रत्याशी भईया लाल राजवाड़े शैलेश शिवहरे को मनाने में कामयाब हो गए, अब देखना यह है कि गिले शिकवे दूर करते हुए क्या शैलेश शिवहरे पूरे मन से भाजपा प्रत्याशी भईया लाल राजवाड़े के लिए काम करेंगे उन्हें जीत दिलाएंगे या फिर अंदर से भीतर घात करेंगे? शैलेश शिवहरे के आने से भले ही भाजपा मजबूत होगी पर शैलेश शिवहरे का ऐसे ही अचानक गिलेशिकवे दूर कर लेना उनके ही समर्थक को बुरा लग रहा, कहीं ना कहीं उन्हें के समर्थक उनके लिए अब बयान बाजी करने लगे हैं और कर भी तो क्यों ना क्योंकि उनके समर्थक भाजपा प्रत्याशी से दिखार हो गए और शैलेश शिवहरे भाजपा प्रत्याशी के पास चले गए,शिवहरे को अपने समर्थकों की दूरी को भी समझना था और सभी को एक साथ ले जाकर गिले शिकवे को दूर करना था पर ऐसा ना करके अकेले ही दूर की प्रत्याशी के साथ गिलेशिकवे दूर कर गले लगा पर समर्थकों के गिलेशिकवे कब दूर होंगे?
भाजपा प्रत्याशी भईया लाल राजवाड़े बुधवार को शैलेश शिवहरे के गिले शिकवे को दूर करते हुए उन्हें गले लगा कर यह संदेश देने का प्रयास किया कि भाजपा में सब कुछ ठीक है और सभी के सहयोग से चुनाव लड़ा जाएगा कहीं पर भी किसी भी प्रकार की कमी नहीं होगी,जिसके लिए बैठक भी की गई बस एक चीज देखने को मिली की जिला अध्यक्ष व अन्य समर्थक इस मामले से दूर दिखे, अब इसकी वजह जो भी हो पर चर्चा का विषय यह भी है, माला पहनने व गले लगाने के बाद एक ही गाड़ी में बैठकर भाजपा प्रत्याशी भईया लाल राजवाड़े व शैलेश शिवहरे जनसंपर्क के लिए निकल पड़े।

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