दिनांक १४ एवं १५ को पुष्य नक्षत्र में १माह से १६ वर्ष तक के बच्चों का स्वर्ण प्राशन संस्कार कराया गया। जिसमें २० से भी अधिक बच्चों ने कराया स्वर्ण प्राशन संस्कार
आयुर दीप हेल्थ केयर के संचालक डॉक्टर दीपक सोनी ने बताया की वर्षों से यह प्रथा दक्षिण भारत में चलती आ रही है लेकिन मध्य भारत में आयुर्वेद की कम मान्यता होने से लोगों को इसके बारे में कम ही पता है उन्होंने बताया कि संहिताओ में आचार्य कश्यप ने कश्यप संहिता में इसका वर्णन किया है जिसमें उन्होंने बताया है स्वर्ण मतलब स्वर्ण का सूक्ष्म रूप (स्वर्णभस्म) और प्राशन मतलब चाटना। उन्होंने बताया कि इसका चटान करने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत होती है छोटी बड़ी बीमारियों में लड़ने में मदत करती है । स्वर्ण प्राशन को पुष्य नक्षत्र के दिन ही बनाया और चाटन कराया जाता है इसको बनने कि लिए स्वर्ण भस्म के अलावा ब्राम्ही, संखपुष्पी, वचा, इंद्रयव, मधु एवं गो घृत जैसे अन्य औषधियों का उपयोग किया जाता है जिससे ना की रोग प्रतिरोधक क्षमता बल्कि बच्चे की बल, अग्नि, बुद्धि, वर्ण इत्यादि में भी फ़ायदा मिलता है
डॉक्टर दीपक सोनी जो की आयुर्वेद विशेषज्ञ है उन्होंने यह भी बताया की आयुर्वेद को लोग घरेलू नुस्ख़े के रूप में लेते है, इसलिये उन्हें उचित परिणाम नहीं मिलता जबकि उन्हें कभी भी किसी विशेषज्ञ से सलाह ले कर ही आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करना चाहिए जिससे लोगों को उचित परिणाम मिले।