स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंह देव ने पंचायत मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया है इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी है उन्होंने अपने चार पन्नो के लेटर हेड में विस्तारपूर्वक अपनी बात मुख्यमंत्री को लिखी है और असहजता जाहिर करते हुए कहाँ है कि मुझे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत प्रदेश के आवास विहीन लोगों को आवास बनाकर दिया जाना था जिसके लिए मैंने कई बार आपसे चर्चा कर राशि आवंटन का अनुरोध किया था किन्तु इस योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी फलस्वरूप प्रदेश के लगभग 8 लाख लोगों के लिए आवास नहीं बनाये जा सके। इसके अतिरिक्त 8 लाख घर बनाने में से करीब 10 हजार करोड़ प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सहायक होते हमारे जन घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ के 36 लक्ष्य अंतर्गत ग्रामीण आवास का अधिकार प्रमुख रूप से उल्लेखित है।
विगत तीन वर्षों से अधिक में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के भारसाधक मंत्री के रूप में कार्य कर रहा हूँ। इस दौरान कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई है जिससे आपको अवगत कराना चाहता हूं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत प्रदेश के आवास विहीन लोगों को आवास बनाकर दिया जाना था जिसके लिए मैंने कई बार आपसे चर्चा कर राशि आवंटन का अनुरोध किया था किन्तु इस योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी फलस्वरूप प्रदेश के लगभग 8 लाख लोगों के लिए आवास नहीं बनाये जा सके। इसके अतिरिक्त 8 लाख घर बनाने में से करीब 10 हजार करोड़ प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सहायक होते हमारे जन घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ के 36 लक्ष्य अंतर्गत ग्रामीण आवास का अधिकार प्रमुख रूप से उल्लेखित है विचारणीय है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में बेघर लोगों के लिए एक भी आवास नहीं बनाया जा सका और योजना की प्रगति निरंक रही मुझे दुःख है कि इस योजना का लाभ प्रदेश के आवास विहीन लोगों को नहीं मिल सका। किसी भी विभाग के अधीन Discretionary योजनाओं के अंतर्गत कार्यों की स्वीकृति का अनुमोदन उस विभाग के भारसाधक मंत्री का निर्धारित अधिकार है किन्तु मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत कार्यों की अंतिम स्वीकृति हेतु Rules of Business के विपरीत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक समिति गठित की गयी कार्यों की स्वीकृति हेतु मंत्री के अनुमोदन उपरांत अंतिम निर्णय मुख्य सचिव की समिति द्वारा लिये जाने की प्रक्रिया बनायी गयी जो प्रोटोकाल के विपरीत और सर्वथा अनुवित है, जिस पर मेरे द्वारा समय-समय पर लिखित रूप से आपत्ति दर्ज करायी।गयी। किन्तु आजपर्यन्त इस व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सका है फलस्वरूप।500 करोड़ से ज्यादा की राशि का उपयोग मंत्री / विधायक / जनप्रतिनिधि के सुझावों के अनुसार विकास कार्यों में नहीं किया जा सका। वर्तमान में
पंचायतों में अनके विकास कार्य प्रारंभ ही नहीं हो पाये।
पेसा अधिनियम आदिवासी भाई-बहनों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसे प्रदेश में लागू करने के संबंध में जनघोषणा पत्र में भी वादा किया था तथा काफी मेहनत से नियम बनाये गये थे ताकि उसे सफलतापूर्वक प्रदेश में लागू किया जा सके। दिनांक
13 जून, 2020 से प्रदेश के आदिवासी ब्लाकों में जाकर वहां के स्थानीय।लोगों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों इत्यादि से निरंतर 02 वर्षों से संवाद स्थापित कर इसका प्रारूप तैयार किया गया। किन्तु विभाग द्वारा जो प्रारूप कैबिनेट
कमेटी को भेजा गया था जिसके अनुसार चर्चा हुई उसमें जल, जंगल जमीन से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओं को बदल कर कैबिनेट की प्रेसिका में शायद पहली बार बदल दिया गया। भारसाधक मंत्री को विश्वास में नहीं लिया गया जो कि अस्वस्थ्य परम्परा को स्थापित करेगा। इस विषय पर पृथक से मैंने।व्यक्तिगत पत्र भी आपको लिखा है।