जगदलपुर । छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में अब जल्द ही नक्सलियों और पूर्व नक्सलियों के बीच जंग देखी जाएगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा के बाद आत्मसमर्पण करके मुख्यधारा में लौटने वाले नक्सलियों की मदद से छत्तीसगढ़ सरकार एक नई फोर्स बनाने जा रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह फोर्स जल्द ही अस्तित्व में आ जाएगी।
डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स का होगा गठन
छत्तीसगढ़ में डीएसएफ यानी डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स के नाम से जल्द ही एक एंटी नक्सल फोर्स अस्तित्व में आ जाएगी । गौरतलब है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने बजट भाषण के दौरान इसके संबंध में घोषणा की थी। सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है, लेकिन है कि इस फोर्स में पुलिस या सीआरपीएफ के जवान नहीं, बल्कि पूर्व नक्सली होंगे।
पूर्व नक्सलियों को किया जायेगा नक्सलियों के खिलाफ तैयार
गौरतलब है कि मौजूदा समय में लगभग तीन हजार युवाओं से सजा सुरक्षाबल ‘डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड’ यानि डीआरजी नक्सल फ्रंट पर तैनात है। इससे पहले बस्तर में चलाये गए नक्सल विरोधी अभियान ‘सलवा जुड़ूम’ के दरमियान भी सरकार ने स्पेशल पुलिस ऑफिसर यानि एसपीओ की भर्ती की थी। सरकार ने उन युवाओं को एसपीओ बनाया था, जो नक्सल हिंसा के कारण विस्थापित किये गए थे। लेकिन 2011 में जब सलवा जुड़ूम पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया था, तब इन्ही एसपीओ को सरकार ने सहायक आरक्षक बनाकर डीआरजी के नाम से अलग फोर्स खड़ी कर दी थी। इस फोर्स में नक्सल पीड़ित युवाओं और सरेंडर करने वाले नक्सलियों को शामिल किया गया था।
खुल जायेगा सीनियर सहायक आरक्षकों की पदोन्नति का रास्ता
डीआरजी की तरह ही अब सरकार डीएसएफ का गठन करने जा रही है। इससे डीआरजी में काम कर रहे सीनियर सहायक आरक्षकों की पदोन्नति का रास्ता खुल जायेगा, वहीं आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को जीवन में नया उद्देश्य मिल जायेगा। बस्तर आइजी पी सुंदरराज के मुताबिक बजट की मंजूरी मिलने के बाद डीएसएफ के गठन के लिए गृह विभाग से नियमावली जारी करेगा। क्योंकि आत्मसम्पर्ण करने वाले सभी नक्सली फोर्स में शामिल किये जाने योग्य नही होंगे, इसलिए गृह विभाग उनकी योग्यता देखकर ही उन्हें फोर्स में स्थान देगा।
कारगर रहा है स्थानीय युवाओं का नक्सलियों के खिलाफ इस्तेमाल
छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर सरेंडर करने वाले नक्सलियों को स्थानीय बोली और जंगलो के चप्पे-चप्पे की जानकारी होती है। वह घने जंगलों और बीहड़ो में बड़ी आसानी से घुसकर नक्सलियों के कैम्प ध्वस्त कर सकते हैं। इतना ही नहीं स्थानीय भाषा का ज्ञान होने से वो ग्रामीणों से आसानी से संवाद कर पाते हैं। इसलिए छत्तीसगढ़ में सरकार हमेशा ऐसे युवाओं को नक्सलियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के पक्ष में रही है। पूर्व नक्सलियों को नक्सलियों के खिलाफ इस्तेमाल करने से ना केवल नक्सलियों के कैम्प ध्वस्त करने में बड़ी सफलताएं मिलती हैं, बल्कि स्थानीय युवाओं के मन में भी फोर्स के प्रति विश्वास बढ़ता है। गृह विभाग से जुड़े अफसरों का मानना है कि सरेंडर करने वाले नक्सली युवाओं को आत्मसमर्पण निति के तहत फायदा पहुंचने के कारण नक्सलियों के खेमे में काम कर रहे युवाओ में भी मुख्यधारा में लौटने का विचार आ रहा है, इस कारण से नक्सलियों की तरफ से सरेंडर करने के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है।