रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शीतकालीन विधानसभा सत्र के पहले ही दिन कांग्रेस विधायकों के साथ बैठक में सभी को चुनाव में विजयी बनाने तथा सभी सीटों पर प्रचार करने की जिम्मेदारी लेकर एक बार फिर खुद को कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है। उन्होंने पार्टी के सभी नेताओं को यह बताने की कोशिश की है कि प्रदेश में वही कांग्रेस के सिरमौर नेता हैं। विधायक दल की बैठक में इसका भी बीजारोपण कर दिया है कि पार्टी सत्ता वापसी की मानसिकता के साथ चुनाव में उतरेगी। विपक्षी दलों और पार्टी में उपस्थित अन्य महत्वाकांक्षी नेताओं को परोक्ष संदेश भी दे दिया है कि वह रणनीतिक तैयारी में जुट चुके हैं। अपनी सरकार के कार्यों और नीतियों के भरोसे उन्होंने पिछली बार से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।
प्रदेश में कांग्रेस सरकार के तीन साल पूरे होने को हैं। इसी के साथ राज्य में अब चुनावी वातावरण बनना भी शुरू हो चुका है। इसका असर आने वाले विधानसभा सत्रों में भी देखा जाएगा। जहां सरकार अपनी उपलब्धियों को सदन के समक्ष रखेगी तो दूसरी तरफ विपक्ष, सरकार के दावों को बेअसर करने की हर संभव कोशिश करेगा। अनुपूरक बजट पर भी इसका प्रभाव दिखेगा। लेकिन ऐसी उम्मीद कम ही है, क्योंकि सारे प्रयास कोरोना के कारण अस्त-व्यस्त हुई अर्थव्यवस्था को सुधारने के होंगे।
अगले वर्ष उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। चूंकि भूपेश बघेल ने मध्य प्रदेश की तरह यहां किसी बड़े उलटफेर के संकट को दूर किया है तथा राजस्थान में सचिन पायलट की तरह यहां किसी भी प्रकार के बड़े आंतरिक विरोध को तैयार नहीं होने दिया है, इसलिए उत्तर प्रदेश में चुनावी रणनीति बनाने से लेकर प्रचार तक में कांग्रेस उनका योगदान ले रही है। केंद्रीय नेतृत्व उनके अनुभव का लाभ अन्य राज्यों में भी ले रहा है।
प्रदेश में मुख्यमंत्री की तरफ से चुनावी रणनीति की बात छेड़ने का एक कारण यह भी हो सकता है कि केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से भरोसा जताए जाने के बाद वह स्पष्ट कर देना चाहते हों कि प्रदेश में सभी कांग्रेस नेता उनके नेतृत्व को स्वीकार कर लें। यह तय माना जाता है कि जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आएगा, दल-बदल और बिगड़े बोल सामने आने लगेंगे।
जनता के बीच प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति उस समय सरकार के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर सकती है, इसलिए विधायकों को क्षेत्र में अपने कार्यों और उपलब्धियों के साथ जाने का संदेश दिया है। अब किनके शब्दों के क्या अर्थ हैं, इसका समय और परिस्थिति के हिसाब से सिर्फ आकलन किया जा सकता है। इन सबके बीच एक बात स्पष्ट है कि चुनावी रणनीतियां बननी शुरू हो चुकी हैं। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री की रणनीति महत्वाकाक्षियों पर कितनी भारी पड़ती है।