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छत्तीसगढ: क्या सतनामी होने की वजह से हुई, रेशम लाल जांगड़े की उपेक्षा?

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रायपुर। छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास में एक नाम रेशमलाल जांगड़े का भी है। रेशमलाल जांगड़े ना केवल आजाद भारत की पहली लोकसभा में निर्वाचित सांसद थे, बल्कि वह भारतीय संविधान सभा के सदस्य, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक भी थे। इतना ही नहीं वह विधायक और मंत्री भी रहे हैं। इतनी सारी उपलब्धियां होने के बावजूद छत्तीसगढ़ के इस महान विभूति के परिजन आज भी उनके सम्मान की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर हैं। रेशमलाल जांगड़े के बेटे हेमचन्द्र जांगड़े ने हाल ही में अपनी पीएचडी पूरी की है। आपको जानकर अचंभा होगा कि उन्होंने यह पीएचडी अपने पिता पर ही की है, क्योंकि वह चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ की अगली पीढ़ी भी उनके पिता के बारे में जाने , क्योंकि ना तो किसी पाठ्यपुस्तक में उनके बारे में जानकारी है और ना सरकार ने किसी चौक चौराहे का नाम रेशमलाल जांगड़े पर रखा है।

रेशम लाल जांगड़े के पुत्र हेमचंद्र जांगड़े का कहना है कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने उनके पिता को भुला दिया है। छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थी तब भी उन्होंने अपने पिता रेशम लाल जांगड़े के नाम से किसी स्कूल, कॉलेज, मार्ग इत्यादि का नाम रखे जाने की मांग की थी। लगातार यह मांग करते रहे कि पाठ्यपुस्तकों में रेशमलाल जांगड़े के बारे में पढ़ाया जाये, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। हेमचंद्र जांगड़े अब बिलासपुर सिम्स का नाम अपने पिता के नामपर रखने की मांग कर रहे हैं।

सतनामी थे, इसलिए उन्हें भुलाया गया: हेमचंद्र

हेमचन्द्र जांगड़े का कहना है कि केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान भी स्वतंत्रता सेनानी रहे रेशमलाल जांगड़े और उनके परिवार को याद नहीं किया। छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित सांसद रहे रेशम लाल जांगड़े अपने आप में एक मिसाल थे। उन्होंने कभी निर्दलीय रहकर, कभी कांग्रेस, तो कभी भाजपा में रहते हुए चुनाव जीता, वह 30 सालों तक राजनीति में सक्रिय रहे, लेकिन कभी पद का मोह नहीं किया और ना ही संपत्ति बनाई। उनके छोटे बेटे हेमचंद का कहना है कि पार्टियों और सरकारों ने उन्हें इसलिए भुला दिया है क्योंकि वह सतनामी थे।

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