सारंगढ़/बिलाईगढ़/IRN.24… छत्तीसगढ़ के प्रमुख पारंपरिक त्योहार भोजली जो सावन पूर्णिमा रक्षाबंधन के दूसरे दिन भोजली दाई और मां गंगा की आराधना के साथ बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है, यह त्यौहार भाईचारा और सद्भावना का प्रतीक है, प्रतिवर्ष नाग पंचमी के दूसरे दिन खेतों से लाई गई मिट्टी को सोने, चांदी, स्टील, बांस और मिट्टी के बर्तन में भरकर गेहूं बोया जाता है,
छत्तीसगढ़ में इस त्यौहार को लेकर मान्यता है कि 7 दिन पहले भोजली की बुआई के बाद हर रोज शाम को भोजली गीत का आयोजन रखा जाता गया और देवी की तरह पूजा-अर्चना होती है. इसके बाद राखी के दूसरे दिन इसे विसर्जित किया जाता है. जिसे लेकर शोभा यात्रा भी निकल जाती है.भोजली पर्व की मान्यता रक्षाबंधन के दूसरे दिन छत्तीसगढ़ का लोकप्रिय पर्व भोजली मनाया जाता है. खासकर गांवों में इस पर्व को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिलता है. जहां बाजे-गाजे के साथ भोजली विसर्जित होती है. मान्यता हैं कि इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है. यह पर्व अच्छी बारिश, अच्छी फसल और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है. रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाओं द्वारा इनकी पूजा-अर्चना करके इन टोकरियों को जल स्त्रोतों के लिए शोभा यात्रा के रूप में ले जाया जाता है.।इस पर्व की छटा आज मध्य छत्तीसगढ़ में सारंगढ़ बिलाईगढ़ के गोरबा में देखने को मिली जहां इस पर्व को धूमधाम से मनाया गया।