जगदलपुर । छत्तीसगढ़ का पूरा बस्तर संभाग अलग-अलग इलाकों में चल रहे आदिवासी आंदोलनों की आग में सुलग रहा है। ऐसा नहीं है कि यह आंदोलन भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में ही हो रहे हैं। पूर्ववर्ती रमन सरकार के कार्यकाल के दौरान भी बस्तर में जल जंगल और जमीन पर अपने हक को लेकर आदिवासी विद्रोह होते रहे हैं, लेकिन अब आंदोलन बढ़ते ही जा रहे हैं।
अपने संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं आदिवासी
छत्तीसगढ़ का बस्तर आदिवासी आंदोलनों की आग में सुलग रहा है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के नेतृत्वकर्ता जहां एक तरफ अपने संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं,वहीं नक्सली और सुरक्षाबलों के संघर्ष से भी निजात पाने की कोशिश जारी है। दरअसल चाहे बात बस्तर की हो ,या सरगुजा की छत्तीसगढ़ के ग्रामीण आदिवासी अपने क्षेत्र में पांचवीं अनुसूची के तहत ग्राम सभा को सही तरीके से अनुपालन कराने की मांग करते रहे हैं। ग्रामीण चाहते है कि ग्राम सभा की अनुमति के बाद ही उनके क्षेत्र में कोई काम हो।
सुरक्षाबलों पर घुसपैठ करने का आरोप
इधर नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि ग्राम सभा की अनुमति लिए बिना सरकार उनके गांव में पुलिस और अन्य सुरक्षाबलों के कैम्प खोल रही है। ग्रामीणों को इस बात का भय है कि पुलिस कैम्प खुलने से भोले-भाले आदिवासियों को भी फर्जी नक्सल मुठभेड़ से जुड़े मामलों में शिकार बनाया जा सकता है। उन्हें डर है कि पुलिस कैम्प से सर्चिंग पर निकले सुरक्षाबलों के जवान उनकी इच्छा के विरुद्ध उनके घरो में प्रवेश करेंगे ,उन्हें माओवादी बताकर जेल में भेज देंगे या मुठभेड़ का शिकार बनाकर उनकी जान ले लेंगे। ग्रामीणों के भय को खारिज भी नहीं किया जा सकता है। हाल में छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से बीते 12 सालों के दरमियान घटी कई नक्सल मुठभेड़ों की न्यायिक जांच के बाद यह तथ्य प्रमाणित हो चुके हैं कि बस्तर में कई दफा कभी जानबूझकर या कभी चूकवश आदिवासी ग्रामीण सुरक्षाबलों की हिंसा का शिकार बने हैं।बस्तर में चल रहे सारे आंदोलन किसी ना किसी रूप में आदिवासियों के इलाकों में सुरक्षाबलों की घुसपैठ के खिलाफ ही हैं। सरकार की समस्या यह है कि अगर बस्तर में विकास करना है ,तो माओवादी और माओवादियों की विचाधारा से प्रभावित ग्रामीणों की मुख्यधारा में वापसी करवानी होगी ,जो सुरक्षाबलों की मौजूदगी के बिना सम्भव नहीं हैं, और अगर बस्तर के जंगलो से सुरक्षाबलों के तैनाती कम कर दी गई ,तो लोकतंत्र और विकास विरोधी माओवादी वहां अपनी सत्ता कायम कर लेंगे। 2018 में छत्तीसगढ़ की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस सरकार ने बस्तर के आदिवासियों और अन्य समाज के लोगों को विश्वास में लेकर ,इन इलाकों में विकास को आधार बनाकर नक्सल समस्या के निराकरण की बाते कही थी ,लेकिन इसमें अब तक सफलता नहीं मिली है। क्योंकि व्यवहारिक तौर पर यह संभव नहीं हो पा रहा है।
पुलिस कैम्प खोलने और खनन कार्य का विरोध
बहरहाल छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिलों में राज्य सरकार और प्रशासन के विरूद्ध आंदोलन बढ़ते ही जा रहे हैं । बस्तर संभाग के अंदरूनी इलाकों से ग्रामीण अपने संवैधानिक अधिकारों को बहाल करने की मांग को लेकर सड़कों पर आ गए हैं। माओवादी प्रभावित कांकेर, बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा ,सुकमा, बीजापुर,कोडागांव के गांवों में कई आदिवासी आंदोलन चल रहे हैं,जो कि पूरी तरह से गैरराजनीतिक हैं । सुकमा-बीजापुर जिले की सरहद पर स्थित ग्राम सिलगेर हो , बीजापुर का बेचापाल गांव हो, नारायणपुर के अबूझमाड़ और दंतेवाड़ा के नहाड़ी गांव इन सभी स्थानों के ग्रामीण वहां खोले जा रहे पुलिस कैंप के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं।
इस सूची ऐसे गांव शामिल हैं,जहां ग्रामीण बिना ग्राम सभा की अनुमति के पुलिस कैम्प खोले जाने या उनके क्षेत्र में खनन कार्य शुरू किये जाने के विरोध में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। बीते साल 2021 की बात की जाये , तो बस्तर में सुकमा ज़िले के सिंगारम, गोमपाड़ , बीजापुर जिले के पुसनार और सिलगेर, एडसमेटा, सारकेगुड़ा के अलावा नारायणपुर जिले के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र अबूझमाड़ कई आंदोलन हुए थे। वहीं सरगुजा संभाग में बिना ग्राम सभा की अनुमति लिए फर्जी ग्रामसभा के आधार पर परसा कोयला खदान में खनन किये जाने का विरोध जारी है।
पक्ष-विपक्ष के बीच जारी है जंग
बस्तर और सरगुजा में बढ़ते आदिवासी आंदोलनों की आग राजधानी रायपुर तक आ पहुंची है। हाल में छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने अपनी समस्याओं के निदान को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की थी। आदिवासी समाज के लोगो का कहना है कि अगर सरकार ने उनकी मांगे नहीं मानी ,तो निकट भविष्य में वह राजधानी रायपुर में बड़ा आंदोलन करेंगे। सीएम भूपेश बघेल का कहना है कि छत्तीसगढ़ में 15 साल तक भाजपा का शासनकाल था,तब बस्तर के लोग डर के कारण अपनी बातें नहीं कह पाते थे, कांग्रेस सरकार के आने के बाद वातावरण सुधरा तो वह अपने घरों से निकलकर अपनी मांगे मांगों शासन तक पहुंचा रहे हैं।
इधर भूपेश बघेल सरकार में बढ़ते आदिवासी आंदोलनों को लेकर छत्तीसगढ़ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय का कहना है कि भूपेश बघेल सरकार आदिवासियों पर अत्याचार कर रही है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की भावनाओं सेखेलकर करके सत्ता तो हासिल कर ली है, लेकिन वह उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। साय का कहना है कि कांग्रेस सरकार आदिवासियों से उनका हक़ छीन रही है, कांग्रेस आदिवासियों की मसीहा बनने का प्रयास करती है लेकिन वास्तविकता में वह आदिवासियों की दुश्मन बन बैठी है।