बालोद । छत्तीसगढ़ के एक शिक्षक ने हिंदी भाषा को सहेजने में अपना जीवन बिता दिया। एक शिक्षक होने के नाते भले ही वे बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते थे। लेकिन हिंदी भाषा के प्रति उनका समर्पण एक मिसाल बन चुका है। प्रदेश के बालोद जिलेे के निवासी जगदीश देशमुख वर्ष 1987 में अंग्रेजी विषय के व्याख्याता के रूप में शिक्षक पद पर नौकरी मिली। तब से 2019 तक लगातार 32 साल बच्चों को अंग्रेजी विषय की शिक्षा दी। लेकिन इसके साथ वे हिंदी की सैकड़ों कविताए लिख कर प्रकाशित कराते रहे।
राष्ट्रपति सम्मान से हैं सम्मानितदर
असल बालोद निवासी सेवानिवृत्त सम्मानित शिक्षक जगदीश देशमुख हिंदी विषय को सहेजने के लिए काव्य लेखन और सकारात्मक पहल के लिए जाने जाते है। जनजातीय क्षेत्र मानपुर मोहला और कबीरधाम जिले के रेंगाखार में शिखक की नौकरी करते हुए बच्चों को अंग्रेजी विषय की शिखा दी। लेकिन उनका मन हमेशा हिंदी लेखन और कविताओं की ओर आकर्षित होता रहा। उन्हे इस कार्य के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति सम्मान से भी सम्मानित किया गया। इसके साथ ही गद्य संग्रह अरण्य संस्कृति के राम (पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में) की सराहना प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है।
तीन काव्य संग्रहों में 200 कविताओं का लेखन
लेखक जगदीश देशमुख ने अपनी काव्य संग्रह में आत्म गौरव के स्वर, धरती के भगवान, आदमी खोजता हूं, क्यों छोड़े जाते है कबूतर , जैसे कई काव्य संग्रह का प्रकाशन उन्होंने किया है। उनकी यह काव्य यात्रा 2019 में सेवानिवृत होने के बाद भी निरन्तर जारी है। इसके अलावा लेख, कविता, काव्य संग्रह लिखकर अब तक हिंदी में 200 से ज्यादा कविता लिख चुके है। 6 काव्य संग्रह किताब का प्रकाशन हो चुका है। जगदीश देशमुख कई समाचार पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर 100 से अधिक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। वे रिडियो पर भी अपनी आलेख प्रस्तुत करतें हैं।
अरण्य संस्कृति के संवाहक श्रीराम को मिली सराहना
कवि सम्मेलन और संगोष्ठी ने बढ़ाई रुचि
साहित्यकार जगदीश देशमुख बताते हैं कि शिक्षकीय सेवा के दौरान उन्हें क्षेत्र में समाचार पत्रिका एक दिन बाद मिलती थी। नक्सल प्रभावित क्षेत्र मानपुर में होने के कारण वे हमेशा शहरों में जाकर अपनी कविताएं टाइपराइटर में टाइप कराया करते थे। हिंदी भाषा को सहेजने में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले जगदीश देशमुख हिंदी भाषा के प्रति उनकी रुचि को इस बात से समझा जा सकता है कि जब भी कवि सम्मेलन या संगोष्ठी की सूचना उन्हें मिलती तो वे शामिल होने के लिए अकेले ही दूरस्थ अंचलों में पहुंच जाया करते थे।