(IRN.24…राधे यादव भैयाथान)
सूरजपुर/ जिले में जिला शिक्षा अधिकारी के पद को लेकर लगातार उठ रही नाराजगी और शिकायतों के बावजूद प्रशासन की चुप्पी अब सवालों के घेरे में है। शिक्षा विभाग से जुड़े जनप्रतिनिधि, संगठनों और निजी विद्यालयों के संचालकों ने लगातार पत्राचार कर वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी श्रीमती भारती वर्मा को हटाने की मांग की है, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है।विधायक से लेकर जिला अध्यक्ष तक विरोध में जिले के विधायक भुलन सिंह मरावी, महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े, भाजपा जिला अध्यक्ष मुरली मनोहर सोनी, भाजपा युवा नेता मोहित राजवाड़े सहित कई अन्य जनप्रतिनिधियों ने पत्रों के माध्यम से जिला शिक्षा अधिकारी को सूरजपुर से हटाने की सिफारिश शासन से की है। बावजूद इसके अधिकारी का तबादला नहीं होना, किसी उच्चस्तरीय संरक्षण की ओर इशारा करता है।आखिर क्यों उठी हटाने कीमांग ?- संचालकों से संवादहीनताः निजी विद्यालय संचालकों का आरोप है कि जिला शिक्षा अधिकारी न तो मिलने का समय देती हैं, न ही फोनउठाती हैं। जरूरी कार्यों पर बात करने से भी परहेज करती हैं जिससे निजी संस्थानों को अनावश्यक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।मान्यता नवीनीकरण में लापरवाहीः सत्र 2025 26 के लिए विद्यालयों की मान्यता नवीनीकरण की प्रक्रिया में देरी, दस्तावेजों की अनदेखी और बिना सूचना के आवेदन निरस्त करने जैसे आरोप बार-बार सामने आए हैं। इससे शिक्षा व्यवस्था बाधित हो रही है।आर.टी.ई. भुगतान लंबितः सत्र 2018-19 एवं 2019 20 के आर.टी.ई. अंतर्गत छात्रवृत्ति भुगतान अब तक लंबित है। संचालकों का आरोप है कि कई बार आवेदन और अनुस्मारक देने के बावजूद भी भुगतान नहीं किया गया।*उदासीन कार्यशैलीः शिकायतों*
के अनुसार अधिकारी न तो जनदर्शन में भाग लेती है और न ही जनप्रतिनिधियों के फोन का जवाब देती हैं। जिले में शासकीय और अशासकीय विद्यालयों के बीच समन्वय की स्थिति समाप्त होती जा रही है।प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल शिकायतों और पत्रों की बाढ़ के बावजूद प्रशासन का मौन शंकाओं को जन्म दे रहा है। सवाल यह भी है कि आखिर किसका संरक्षण अधिकारी को प्राप्त है कि विधायक, मंत्री, संगठन और जिला अध्यक्ष की लिखित सिफारिशों के बावजूद भी तबादला नहीं किया गया?
शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतरी स्थानीय विद्यालयों, शिक्षकों, पालकों
और संगठनों के अनुसार, जिले की शिक्षा व्यवस्था अब बिखरने की कगार पर है। अधिकारी के प्रति आक्रोश दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। शिक्षक संगठनों में असंतोष है, जनप्रतिनिधि उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और निजी स्कूलों के संचालन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
अब सवाल यह है-
क्या सूरजपुर के शिक्षा विभाग में जवाबदेही खत्म हो चुकी है?, किसकी शह पर लगातार शिकायतों के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही?, क्या शिक्षा व्यवस्था को यूं ही दम तोड़ने दिया जाएगा?अब देखना यह है कि शासन कब चेतता है और कब जिले की शिक्षा व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों