बंगाल के चुनावी माहौल में बढ़ेगी गरमाहट:शेयर बाजार रेगुलेटर सेबी के 3 अधिकारियों के 6 ठिकानों पर छापा, शारधा घोटाले के मामले में जांच
- सेबी के सीनियर अधिकारियों पर मुंबई और अन्य जगहों पर छापे पड़े हैं
- तीनों अधिकारी कोलकाता की सेबी की ऑफिस में पहले काम कर चुके हैं
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने शेयर बाजार रेगुलेटर सेबी के 3 अधिकारियों के घर सहित 6 ठिकानों पर आज छापा मारा है। यह छापा पश्चिम बंगाल के चिटफंड घोटाले शारधा के मामले में मारा गया है। यह छापा ऐसे समय में मारा गया है, जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव तेजी में है।
दर्जनों विधायकों और सांसदों से हुई थी पूछताछ
सीबीआई ने इस मामले में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के दर्जनों विधायकों और सांसदों से पूछताछ की थी। इसमें कई नेता सीधे तौर पर इसके ऑपरेशन से जुड़े थे। जानकारी के मुताबिक, जिन अधिकारियों के घरों, ऑफिसों और अन्य जगहों पर छापे मारे गए हैं, वे सभी सेबी के सीनियर अधिकारी हैं। यह छापे मुंबई सहित महाराष्ट्र के अन्य इलाके में मारे गए हैं। सेबी के ऑफिस में भी छापा मारा गया है।
ऐसा माना जा रहा है कि यह अधिकारी शारधा घोटाले में जांच में कुछ गलत किए हैं। यह सभी शारधा घोटाले के समय 2009 और 2013 में कोलकाता की सेबी की ऑफिस में काम करते थे।
अवैध तरीके से पैसा जुटाने का मामला
शारधा घोटाले में अवैध तरीके से वित्तीय मामले सामने आए थे। इसमें नेताओं की भी भागीदारी थी। इसमें विधायक, सांसद भी शामिल हैं। यहां के शारधा ग्रुप द्वारा पोंजी स्कीम चलाई जा रही थी। इस घोटाले में इनकम टैक्स विभाग, प्रवर्तन निदेशालय (ED) और CBI तीनों जांच कर रहे हैं। शारधा ग्रुप 200 निजी कंपनियों के साथ काम करती है। उसी की यह ग्रुप कंपनी है।
साल 2000 में इसे शुरू किया गया था
इसे साल 2000 में बिजनेसमैन सुदिप्तो सेन ने शुरू किया था। इसके जरिए छोटे निवेशकों को ज्यादा ब्याज की लालच दी गई थी। इस वजह से बहुत ही कम समय में यह लोकप्रिय स्कीम बन गई थी। इसमें एजेंट को 25% से ज्यादा का कमीशन दिया जाता था।
2,500 करोड़ रुपए कुछ सालों में जुटा लिया था
शारधा ग्रुप ने इसके जरिए कुछ ही साल में 2,500 करोड़ रुपए जुटा लिए थे। बाद में इस स्कीम को पश्चिम बंगाल से बाहर उड़ीसा, असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में भी फैला दिया गया था। इसमें करीबन 17 लाख निवेशक थे। कंपनी 10 हजार से 1 लाख रुपए तक लोगों से लेती थी और यह 15 से 120 महीनों के लिए लेती थी। इस ग्रुप को अभी भी निवेशकों के 1,876 करोड़ रुपए वापस करने हैं।
इस मामले की जांच पहले सेबी ने भी की थी। हालांकि सेबी को जब शुरुआती शिकायत मिली थी, तब इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। बाद में इस मामले में को केंद्रीय जांच एजेंसियों को सौंप दिया गया।