जशपुर से उठी लोकतंत्र की चीख अब पूरे प्रदेश को झकझोर रही है। पत्रकारों को चुप कराने और उनकी कलम तोड़ने की सुनियोजित साजिश ने सत्ता और तंत्र की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जनसंपर्क विभाग की सहायक संचालक नूतन सिदार पर आरोप है कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर पत्रकारों को एक-एक करोड़ रुपये के मानहानि नोटिस थमा दिए। यही नहीं, फोन पर आत्महत्या के मामले में फँसाने की धमकी देना प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना जा रहा है।
इतना ही नहीं, शासकीय ग्रुप का निजीकरण कर पत्रकारों का अपमान किया गया। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जिम्मेदार अधिकारी मौन बने रहे, जिससे प्रशासन की नीयत और भी संदेह के घेरे में है। पत्रकारों को “अपराधी” बताना लोकतंत्र की रीढ़ पर सीधा वार है।
पत्रकार संघ की मांगें
नूतन सिदार के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज कर बर्खास्तगी की जाए।
जनसंपर्क आयुक्त और संवाद प्रमुख सार्वजनिक माफीनामा जारी करें।
विशेष उच्च स्तरीय जांच समिति गठित कर दोषियों को सख्त सजा मिले।
सिविल सेवा आचरण नियमों के उल्लंघन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
सरकार से सवाल
पत्रकार सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। लेकिन यही पत्रकार आज उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
गौरतलब है कि भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में पत्रकारों पर लगातार अत्याचार हुए। उस समय विपक्ष में रही भाजपा ने कहा था कि सत्ता में आने पर पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करेंगे और पत्रकारों पर दर्ज प्रकरण शून्य करेंगे। लेकिन मौजूदा सरकार ने अब तक इस वादे को अमली जामा नहीं पहनाया।
यह केवल जशपुर का मुद्दा नहीं है, बल्कि लोकतंत्र और पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। यदि सरकार ने त्वरित और कठोर कार्रवाई नहीं की, तो यह संदेश जाएगा कि सत्ता पत्रकारों की कलम तोड़ने की मुहिम चला रही है।
संयुक्त पत्रकार संघ जशपुर की आवाज अब पूरे प्रदेश में गूंज रही है—
“लोकतंत्र पर हमला बर्दाश्त नहीं होगा!”