इस सप्ताह के तीज-त्योहार:28 मार्च तक होलाष्टक की वजह से नहीं होंगे शुभ काम, व्रत और उत्सव के लिए नहीं है मनाही
- हिंदू कैलेंडर का आखिरी दिन होता है फाल्गुन पूर्णिमा, स्नान-दान और भगवान विष्णु की पूजा के साथ मनाया जाता है ये पर्व
21 मार्च को सुबह अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो गया है। जो कि 28 मार्च को पूर्णिमा तिथि के साथ खत्म होगा। होली के पहले के दोष पूर्ण इन आठ दिनों में हर तरह के मांगलिक कामों की मनाही रहेगी। इन दिनों में व्रत और पूजा-पाठ करने से दोष नहीं लगेगा और उत्सव भी मनाया जाएगा। कई जगहों पर इस हफ्ते एकादशी तिथि पर फाग उत्सव के साथ ही होली की शुरुआत हो जाएगी। साथ ही एकादशी, द्वादशी और प्रदोष तिथि पर व्रत किए जााएंगे। साथ ही स्नान-दान और पूजा-पाठ करने से पुण्य मिलेगा।
होलाष्टक (21 से 28 मार्च तक ) : होलिका दहन के पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। ज्योतिष के नजरिये से से होलाष्टक को दोष माना जाता है, जिसमें शादी, गृह प्रवेश और नए मकान का निर्माण कार्य नहीं किया जाता है। इसलिए इस दौरान नए कामों की शुरुआत और हर तरह के मांगलिक कामों की मनाही होती है।
रंगभरी ग्यारस, आमलकी एकादशी (24 मार्च) : भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत में आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान विष्णु से ही आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई है। इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। कई मंदिरों और तीर्थ स्थानों पर इस दिन से ही होली की शुरुआत हो जाती है। इस पर्व पर काशी में भगवान शिव को भस्म से होली खेलाई जाती है।
नृसिंह द्वादशी (25 मार्च) : शास्त्रों के मुताबिक फाल्गुन महीने के शुक्लपक्ष के बारहवें दिन यानी द्वादशी तिथि को नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 25 मार्च को रहेगा। भगवान विष्णु के बारह अवतार में से एक अवतार नृसिंह का माना जाता है। इस अवतार का आधा शरीर इंसान और आधा शेर का है। इसी रूप को धारण के भगवान विष्णु ने राक्षस राजा हिरण्यकश्यप को मारा था। उसी दिन से इस पर्व की शुरुआत मानी जाती है।
फाल्गुन पूर्णिमा (28 मार्च) : हिंदू कैलेंडर के आखिरी महीने का नाम फाल्गुन है और इस महीने की पूर्णिमा हिंदू पंचांग के साल का भी आखिरी दिन होती है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ के जल से स्नान का महत्व माना गया है। साथ ही इस दिन दिया गया दान कई गुना शुभ फल देने वाला होता है। वहीं शाम को भद्राकाल के बाद होलिका दहन किया जाता है।